Tuesday 4 March, 2008

“वक्त नही”

“वक्त नही”

हर खुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हँसी के लीये वक्त नही.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िंदगी के लीये ही वक्त नही.

माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नही.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफनाने का भी वक्त नही.

सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लीये वक्त नही
गैरों की क्या बात करे
जब अपनों के लीये वक्त नही.

आंखों में हैं नीद बड़ी
पर सोने का वक्त नही
दिल हैं ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का भी वक्त नही

पैसों की दौड़ मे ऐसे दौडे
की थकने का भी वक्त नही
पराये एहसासों की क्या कद्र करें
जब अपने सपनो के लीये ही वक्त नही

तू ही बता ऐ ज़िंदगी
इस ज़िंदगी का क्या होगा
की हर पल मरने वालों को
जीने के लीये भी वक्त नही……. .


MB

1 comment:

Unknown said...

wow wat a great words. Its real life facts which u wrote there.